باز محرم شد و دلها شکست...

|
زهره ی منظومه ی زهرا حسین | |
|
كشته ی افتاده به صحرا حسین |
|
|
دست صبا زلف تو را شانه كرد | |
|
بر سر نی خنده ی مستانه كرد |
|
|
چیست لب خشك و ترك خورده ات ؟ | |
|
چشمه ای از زخم نمك خورده ات |
|
|
روشنی خلوت شب های من | |
|
بوسه بزن بر تب لب های من |
|
|
تا ز غم غربت تو تب كنم | |
|
یاد پریشانی زینب كنم |
|
|
آه! از آن لحظه كه بر سینه ات | |
|
بوسه نشاندند لب تیرها |
|
|
آه! از آن لحظه كه بر پیكرت | |
|
زخم كشیدند به شمشیرها |
|
|
آه! از آن لحظه كه اصغر شكفت | |
|
در هدف چشم كمانگیرها |
|
|
آه! از آن لحظه كه سجاد شد | |
|
هم نفس ناله ی زنجیرها |
|
|
قوم به حج رفته به حج رفته اند | |
|
بی تو در این بادیه كج رفته اند |
|
|
كعبه تویی كعبه به جز سنگ نیست | |
|
آیینه ای مثل تو بی رنگ نیست |
|
|
آینه ی رهگذر صوفیان | |
|
سنگ نصیب گذر كوفیان |
|
|
كوفه دم از مهر و وفا می زدند | |
|
شام تو را سنگ جفا می زدند |
|
|
كوفه اگر آینه ات را شكست | |
|
شام از این واقعه طرفی نبست |
|
|
كوفه اگر تیغ و تبر زین شود | |
|
شام اگر یكسره آذین شود |
|
|
مرگ اگر اسب مرا زین كند | |
|
خون مرا تیغ تو تضمین كند |
|
|
آتش پرهیز نَبُرّد مرا | |
|
تیغ اجل نیز نَبُرّد مرا |
|
|
بی سر و سامان توام یا حسین | |
|
دست به دامان توام یا حسین |
|
|
جان علی سلسله بندم مكن | |
|
گردم و از خاك بلندم مكن |
|
|
عاقبت این عشق هلاكم كند | |
|
در گذر كوی تو خاكم كند |
|
|
ساقی لب تشنه لبی باز كن | |
|
سفره ی نان و رطبی باز كن |
|
|
شمه ای از زخم دلت بازگو | |
|
نكته ای از نقطه ی آغاز گو |
|
|
قوم به حج رفته چو باز آمدند | |
|
بر سر نعشت به نماز آمدند |
|
|
قوم به حج رفته تو را كشته اند | |
|
پنجه به خوناب تو آغشته اند |
|
|
سامریان شعبده بازی كنند | |
|
نفی رسولان حجازی كنند |
|
|
"زنده یاد حاج محمدرضا آقاسی" |